सोच की गति सी गतिमय , मैं ढूंढ़ती थी अपना परिचय
कुछ शुन्य सा था जीवन में, और प्रश्न थे अतिशय
कौन हु मैं, कौन है मेरा और क्या है संभावना ?
एक लक्ष्य ले के निकल पड़ी -माँ बनने की कामना।

करके निश्चय प्रबल, चल दी मैं अति सावधान
करने स्वयं को सफल, पार किया हर एक व्यवधान
अपनो को समझाया और विचारों का किया सामना
बातें सबकी सुन के भी अडिग थी मेरी कामना।

सपने रोज़ संजोती थी, बहुत लम्बी थी प्रतीक्षा
लगता था जैसे ये है जीवन की सबसे कठिन परीक्षा
धैर्य, कौतुहल और डर था, पर मन को था थामना
आने वाली थी खुशियां, पूरी होनी थी कामना

छोटी छोटी आँखें तेरी, अद्भुत रंगो से सज्जित
किसी और लोक से आयी तू, कर दिया तूने मुझे जीवित
तू है मेरी बाँहों में ,अब जीत लिया मैंने ये जग
अब नहीं हैं कोई डर, अब नहीं किसी से हारना
संपूर्ण हो गयी मैं जो पूर्ण हुई ये कामना !

If I were asked – “what do you desire?”
I will say “nothing” and I won’t be a liar.
Because God gave me “you” and fulfilled my dream
What do i need, when you and I are a team!

Soumya Mishra